थैलीसीमिया।

थैलीसीमिया बच्चों में होने वाला एक गंभीर रोग है। इस रोग का संबंध रक्त की कमी से होता है। रक्त के भीतर हीमोग्लोबिन का निर्माण होता है, वह सही या पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाता है । जिस कारण बच्चे के शरीर में, लाल रक्त कणों की कमी हो जाती है। लाल रक्तकण जिनकी औसत आयु तीन माह होती है वह रक्त के भीतर समय से पूर्व ही टूट जाती है,और उनकी जगह नए लाल रक्तकण नहीं बन पाते है। इस अवस्था में बच्चे के शरीर में रक्त की कमी होने लगती है। बच्चा कमजोर और बीमार होने लगता है। थैलीसीमिया बिमारी काफी घातक और जटिल होती है इसका उपचार जीवन भर लेना पड़ता है।

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थैलीसीमिया के लक्षण।

थैलीसीमिया बच्चो में होने वाला रक्त संबंधी एक घातक रोग है इस रोग का पता बच्चे की तीन माह कीआयु में ,या कई बार इस रोग की पहचान होने में काफी समय लगता है। क्योंकि बच्चा अपनी शारीरिक समस्याओं को खुद बता नहीं सकता ,इसलिये इस बिमारी की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। माता पिता को अपने बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति सजग और जाग्रत रहना चाहिए। थैलीसीमिया जैसी जानलेवा बिमारी के प्रति जागरूक, सजग, और जानकारी तीनों ही चीजों का होना बहुत आवश्यक है। इसलिए हम थैलीसिमिया की कुछ लक्षणों के विषय में जानेंगे जो कि निम्न प्रकार हैं।

  • थैलीसीमिया के मरीज की त्वचा का रंग बहुत अधिक सफेद या पीला हो जाता है।
  • थैलीसीमिया के मरीज का रंग पीलिया के मरीज के समान हो जाता है। उसकी त्वचा आंख और नाखून तक पीले दिखाई देने लगते हैं।
  • बच्चे का वजन कम होने लगता है।
  • बच्चे की खाने पीने की मात्रा कम होने लगती है।
  • बच्चे की भीतर चिड़चिड़ाहट अधिक बढ़ जाती है।
  • बच्चे का शरीर कमजोर और कुपोषण का शिकार होने लगता है।
  • बच्चे की भीतर हड्डियाँ कमजोर होने लगती है।
  • बच्चों के भीतर हड्डियाँ जल्दी जल्दी टूटने लगती है।
  • बच्चे को बुखार इन्फेक्शन बार बार होने लगते हैं।
  • बच्चो में लगातार थकान बनी रहती है।

थैलीसीमिया रोग के मरीज में सबसे प्रमुख लक्षण उसकी त्वचा का रंग बदलना होता है। छोटे बच्चो में त्वचा का रंग पीला या सफेद हो जाता है। जिसको हम ये मानते हैं ,की बच्चे का रंग साफ हो रहा है ,मगर यह साफ या सफेद रंग ,थैलीसीमिया रक्त विकार के कारण भी हो सकता है इस के साथ अगर बच्चे का भार कम हो रहा है बच्चा चिड़चिड़ा हो रहा है, या बच्चा कम खा रहा है। तब हमें इन लक्षणों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

थैलीसीमिया होने के कारण।

थैलीसीमिया रोग होने के मुख्य कारण निम्न प्रकार हैं।

१:-थैलीसीमिया रोग होने का कारण अनुवांशिकता है। ये है एक आनुवांशिकी रोग है जो माता और पिता दोनों के ही जीन में गड़बड़ी होने के कारण बच्चे को होता है। जब माता और पिता दोनों में थैलीसीमिया जिन उपस्थित होते हैं। उस स्थिति में उनकी संतान को यह रोग होने की प्रबल संभावना होती है। इसीलिए थैलीसीमिया एक आनुवांशिकी रोग है।

2:- थैलीसीमिया आनुवांशिकी के अतिरिक्त मच्छरों द्वारा भी हो सकता है यह रोग मच्छरों द्वारा एक विशेष प्रकार के परजीवी के कारण भी हो सकता है।

3:- थैलीसीमिया आनुवांशिकी के अतिरिक्त बहुत अधिक रासायनिक चीजों का उपयोग और अधिक रेडिएशन के संपर्क में रहने के कारण भी हो सकता है।

4:- इसके अतिरिक्त बहुत कम संख्या में कई अन्य कारण भी इस रोग के ज्ञात हुए हैं जैसे की आंतों में किसी समस्या का होना खान पान की आदतों का सही न होना या किसी संक्रमण द्वारा रोग ग्रसित हो जाना।

थैलीसीमिया रोग के मुख्य कारणों में अनुवांशिकता ही प्रथम दृष्टा देखी जाती है। इसीलिए बच्चे के जन्म से पूर्व ही थैलीसीमिया रोग जांच और माता पिता की भीतर थैलीसीमिया जीन की जांच भी करायी जाती है।

थैलीसीमिया रोग की जांच।

थैलीसीमिया रोग की जांच की कई विधियां है जिनके माध्यम से रोग की जांच और प्रशिक्षण किया जा सकता है जो कि निम्न प्रकार हैं।

  • चिकित्सकीय परीक्षण:- इस विधि में विशेषज्ञ चिकित्सक बच्चों के लक्षणों का मूल्यांकन करता है। उसकी जांच और इसके लक्षणों के आधार पर वह रोग का परीक्षण करता है। बच्चों की शारीरिक स्थिति , ऊर्जा स्तर ,उसके शारीरिक लक्षण आदि लक्षणों के आधार पर थैलीसीमिया रोग की जांच करता है।
  • रक्त परीक्षण :- इस विधि के भीतर बच्चे के रक्त का नमूना लेकर उसकी जांच कराई जाती है। रक्त की जांच से रक्त में हीमोग्लोबिन आर बी सी आदि अन्य मानको के बारे में पता लगाया जाता है। परीक्षण के परिणामों का अध्ययन करके यह पता लगाया जाता है के बच्चे में थैलेसीमिया रोग है या नहीं।
  • जेनेटिक टेस्टिंग :- इस टेस्ट में बच्चे का जेनेटिक टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट के माध्यम से ये है पता लगाया जाता है। के बच्चे के जीनो में थैलीसीमिया जेनेटिक रोग है ,या नहीं या बच्चे के जीन में कोई अन्य असामान्यता तो नहीं है।
  • हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस :-यह रक्त का एक विशेष परीक्षण होता है। जो हीमोग्लोबिन के भिन्न प्रकारों का पता लगाने में उपयोग होता है। इसके माध्यम से बच्चे के भीतर थैलीसीमिया रोग की पुष्टि की जाती है

थैलीसीमिया रोग की यह कुछ मुख्य चिकित्सकीय जांच है , जिनके माध्यम से थैलीसीमिया रोग की पुष्टि किसी बच्चे में की जाती है। उपयुक्त टेस्ट बच्चे के भीतर थैलीसीमिया के स्तर और उसके प्रकार को स्पष्ट करने में सहयोग करते हैं, जिससे बच्चे के थैलीसीमिया का सही उपचार, चिकित्सक निर्धारित कर पाते है।

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थैलीसीमिया के प्रकार।

थैलीसीमिया मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है जो कि निम्न प्रकार हैं।

  • थैलीसीमिया माइनर:- थैलीसीमिया के इस प्रकार मैं जिनको थैलीसीमिया होता है उनको कोई भी शारीरिक लक्षण या समस्या नहीं होती है उनके भीतर मात्र हीमोग्लोबिन कम रहता है जिसका कोई भी दुष्परिणाम दिखाई नहीं देता और सामान्य रूप से ये है पहचाना भीथैलीसीमिया माइनर के पेशेंट मरीज एक सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं उनकी थैलीसिमिया माइनर होने की पुष्टि किसी सर्जरी या किसी अन्य बिमारी की जांच की समय पता लगती है थैलीसीमिया माइनर मरीज को किसी भी प्रकार से कोई भी आपात स्थित इ नहीं आती है।
  • थैलीसीमिया इंटरमीडिएट :-थैलीसीमिया इंटरमीडिएट प्रकार के मरीज में शारीरिक समस्याएं थैलीसीमिया माइनर से कुछ अधिक होती है। इस प्रकार के मरीज को थैलीसीमिया माइनर से अधिक सजग और सावधान रहने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के मरीजों में अस्थायी अनीमिया ,थकान ,पेट दर्द,थकान ,पीठ दर्द ,बुखार ,बिगड़ा हुआ पाचन, सिर दर्द जैसे ही लक्षण आती रहती है।
  • थैलीसीमिया मेजर:- थैलीसीमिया मेजर एक गंभीर रक्त संबंधी रोग है। इसमें व्यक्ति को माता और पिता दोनों से ही थैलीसीमिया जीन मिलते हैं। यह जीन हीमोग्लोबिन बनाने के लिए आवश्यक होता है। मगर थैलीसिमिया मेजर वाले मरीज में रक्त में हीमोग्लोबिन की संख्या कम होती जिससे अनेमिया होता है। जो उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बहुत बुरी तरीके से प्रभावित करता है। इस प्रकार की मरीजों के लिए संपूर्ण जीवन उपचार की आवश्यकता रहती है।

थैलेसीमिया रोग का उपचार।

थैलीसीमिया का उपचार रोग की स्थिति रोगी के लक्षण उम्र और अवस्था के अनुसार किया जाता है। इसके भीतर रोगी की शारीरिक स्थिति और रक्त के परीक्षण के पश्चात उपलब्ध जानकारी के अनुसार अलग अलग हो सकता है। थैलीसीमिया के उपचार निम्न प्रकार हैं

  • रक्त संशोधन:- थैलीसीमिया के अधिकतर मामलों में रक्त संशोधन की आवश्यकता होती है। जिसके लिए मरीज को नियमित रूप से रक्त संशोधन के लिए हॉस्पिटल जाना पड़ता है। जिससे उसके रक्त के भीतर सभी आवश्यक पदार्थ संतुलित अवस्था में रहें।
  • अतिरिक्त रक्त को चढ़ाना:- थैलीसीमिया के मरीज के भीतर हिमोग्लोबिन कि अधिक कमी होने पर आपात स्थिति में बाहर से उसके शरीर के भीतर अतिरिक्त रक्त को चढ़ाया जाता है। जिससे मरीज के भीतर हीमोग्लोबिन की आवश्यक मात्रा बनी रहे।
  • केलेटर्स या धातु की खुराक:- कुछ मामलों में थैलीसीमिया की मरीज को आयरन जैसी धातुओं की औषधीय दे कर थैलीसिमिया के लक्षणों को नियंत्रित किया जाता है।
  • पौष्टिक आहार:- थैलेसीमिया के मरीजों के लिए सही पोषण और उचित देखभाल के साथ बच्चो की शारीरिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए भोजन फल आदि द्वारा भी थैलीसीमिया के लक्षणों में नियंत्रण रखा जाता है।
  • औषधियों द्वारा:- थैलीसिमिया की कुछ मामलों में औषधियों का उपयोग करके थैलीसिमिया के लक्षणों को नियंत्रित किया जाता है।
  • प्रत्यारोपण:- थैलीसीमिया की गंभीर अवस्था में बच्चों को बोनमैरो की आवश्यकता होती है। इस अवस्था में बोनमैरो प्रत्यारोपण किया जाता है। जिससे थैलीसिमिया रोग से ग्रसित बच्चे के भीतर पुनः रक्त को बनाने में मदद मिलती है।

थैलीसीमिया मैं योग चिकित्सा।

थैलीसिमिया एक घातक रोग होता है ,जो कि छोटे बच्चों में पाया जाता है इस रोग के कारण शरीर के भीतर रक्त की कमी हो जाती है। रक्त में हीमोग्लोबिन काफी कम होता है मरीज का स्वास्थ्य और स्थिति दोनों ही कमजोर अवस्था में रहते हैं। इसलिए इस प्रकार के मरीजों को बहुत ही विशेषज्ञता के साथ योग अभ्यास करना चाहिए। ऐसे मरीजों के लिए यौगिक आहार ,सूक्ष्म व्यायाम, और कुछ विशेष प्रकार के प्राणायामों का अभ्यास कराया जाता है। भारी आसन और व्यायाम को कराना इस प्रकार की मरीजों के लिये अधिक थकाने वाला हो सकता है। इसलिए थैलीसिमिया की मरीजों के लिए योग चिकित्सा में ध्यान और प्राणायाम मुख्य अभ्यास होते हैं। प्राणायाम में मुख्य रूप से प्राण आकर्षण प्राणायाम ,अनुलोम विलोम प्राणायाम ,नाड़ी शोधन प्राणायाम आदि थैलीसीमिया रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी सिद्ध होते हैं। इन प्राणायामों के अभ्यास से रक्त के भीतर हीमोग्लोबिन की कम मात्रा होने पर भी रोगी के शरीर के भीतर ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा उपलब्ध रहती है। जिससे थैलीसिमिया रोगी को अधिक शारीरिक कष्ट नहीं होता है। इसलिए थैलीसिमिया रोगियों के लिए योग प्राणायाम बहुत ही लाभकारी है। छोटे बच्चो को प्राणायाम आसानी से कराया और सिखाया जा सकता है, जिससे वह थैलीसीमिया जैसे रोग का सामना आसानी से कर सके।

निष्कर्ष।

थैलीसीमिया बच्चो में उनके माता पिता द्वारा आनुवांशिकी रूप से आता है। इसीलिए जैसे ही माता गर्भ धारण करें ,गर्भधारण के 12 हफ्तों के भीतर थैलीसीमिया की जांच कराकर ये सुनिश्चित करें कि उनकी आने वाली संतान को थैलीसीमिया संबंधी कोई समस्या तो नहीं है। अगर फिर भी हम यह ज्ञात नहीं कर पाते और बच्चे के जन्म के बाद हमें उपयुक्त लक्षण बच्चे के भीतर दिखाई दे तो हमको तुरंत सजग और सावधान हो कर चिकित्सकीय सहायता प्राप्त करना चाहिए और स्वयं को इस बिमारी से लड़ने के लिए मानसिक और भावनात्मक रूप से तैयार करना चाहिए।